पत्र एवं पत्रकारिता >> पत्रकारिता में अनुवाद पत्रकारिता में अनुवादजितेंद्र गुप्त, प्रियदर्शन, अरुण प्रकाश
|
0 |
अनुवाद की कला कठिन है क्योंकि दो भिन्न भाषाओं की अभिव्यक्ति शैली भी भिन्न होती है
अनुवाद की बात आते ही हमें दो भाषाओं का परिदृश्य ध्यान में आता है। अनुवाद की जरूरत केवल दो भाषाओं के सन्दर्भ में ही हो, ऐसा जरूरी नहीं है। अनुवाद के कई ऐसे आयाम होते हैं जिन पर हम आमतौर पर गौर नहीं करते। दो विरोधी दर्शन और विचार रखनेवालों के बीच संवाद के लिए भी अनुवाद की जरूरत होती है। अनुवाद के ऐसे गैर-पारम्परिक अर्थ और प्रसंग को छोडू भी दें, तो भी पत्रकारिता के क्षेत्र में अनुवाद का अहम स्थान है। हिन्दी के प्रति प्रेम, राष्ट्र-गौरव की भावना, आत्म-सम्मान जैसे सराहनीय और वांछनीय आदर्शों के सशक्त हिमायती होने के बावजूद इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अखबारों द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य के निरन्तर, अद्यतन और सही ढंग से अंकन के लिए अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद की जरूरत अभी भी बरकरार है। अनुवाद की कला कठिन है क्योंकि दो भिन्न भाषाओं की अभिव्यक्ति शैली भी भिन्न होती है। हर भाषा का एक अपना चरित्र होता है और उस चरित्र का कारण भाषा की शैली की विशिष्टता होती है। विद्वान लेखकों द्वारा तैयार इस पुस्तक के जरिये इस कला को विस्तार देने और सँवारने की कोशिश की गई है। पत्रकारिता से जुड़े हर व्यक्ति के लिए यह उपयोगी पुस्तक है।
|